जब राहु केतु की दृष्टि ही नहीं होती तो इतना बखेड़ा क्यों?

Monday, 20 May 2024

 


दुनिया के हर क्षेत्र की तरह ज्योतिष विद्या में कई नए शोध हुए हैं। इसी शोध की बदौलत आज ज्योतिष शास्त्र में भी जबरदस्त बदलाव हुए हैं। इसे स्वीकार किए बिना, केवल प्राचीन ग्रन्थों को पढ़कर उन सूत्रों को आज की परिस्थिति में ढाले वगैर फल कथन करना, पानी में लाठी पीटने के समान है। वो चाहें भृगु संहिता, मानसागरी, स्वार्थ चिंतामणि, फल दीपिका, लघु पराशरी हों या ज्योतिष तत्वांग, फलित सूत्र, ज्योतिष रत्नाकर, सारावली आदि किताबें। 


आखिर कब तक संस्कृत के कुछ रटे-रटाए सूत्रों से राहु, केतु, शनि, मंगल, कालसर्प, गुरु चांडाल आदि के नाम पर लोगों को डराते रहेंगे। वर्षों से भविष्य बदलने का दावा करने वाले डर के सौदागरों ने आम आदमी के मन में इस हद तक नकारात्मकता भरी है कि अच्छा खासा तबका इस विद्या के आस्तित्व पर आए दिन प्रश्न चिन्ह खड़े करते रहता है। मुझे याद है, जब पटना में पत्रकारिता के लिए लेखन का ककहरा सीख रहा था। उसी दौरान बुनियादी ज्ञान देते हुए संपादक श्री अवधेश प्रीत जी ने कहा था कि सरल, सहज और रोचक सामग्री ही इसमें सफलता का आधार है। 


इसके लिए टेबल राइटिंग नहीं चलेगी, फील्ड में लोगों के पास जाना होगा। जमीनी स्तर पर चीजें समझनी होंगी। और बोलचाल की भाषा में आम आदमी की बातें लिखनी होंगी। जिसे एक रिक्शा चालक से लेकर पीएचडी आदमी तक समझ जाए। ये सीख केवल पत्रकारिता के क्षेत्र में ही नहीं दुनिया के किसी भी रचनात्मक क्षेत्र यहां तक की ज्योतिष शास्त्र पर भी लागू होती है। इस मामले में मैं देश के प्रसिद्ध ज्योतिषी केएन राव साहब को अपना ज्योतिषीय गुरु मानता हूं। 


उन्होंने स्पष्ट किया है कि देश, काल, परिस्थिति के मुताबिक ही वहां का चाल, चरित्र व चेहरा होता है। उसी के हिसाब से फल कथन भी होने चाहिए। इस पराविद्या से जुड़ी अभिव्यक्ति के संबंध में साफागोई, निष्पक्षता को लेकर श्री राव पर भी कुछ विद्वानजन अंगुलिया उठाते रहते हैं। उनकी जमकर आलोचना भी करते हैं। क्योंकि सवाल पेट पर लात मारने का जो है। हालांकि किताब में लिखी उनकी इक्का-दुक्का बातों से मेरी भी असहमति रहती है। 


लेकिन एक 92 वर्षीय दक्षिण भारतीय अविवाहित आदमी जिसने जीवन के बहुमूल्य 80 वर्ष इस विद्या में खपा दिए। जिसके पिता देश के मशहूर अंग्रेजी पत्रकार दैनिक हेरोल्ड अखबार के संस्थापक के रामा राव जैसी हस्ती हों। जिनकी माता सरसवाणी देवी भी कुशल ज्योतिषी थीं जिन्होंने पुत्र को 12 वर्ष की किशोर उम्र से ज्योतिषी की शिक्षा देनी शुरू कर दी। वहीं किशोर आगे चलकर शतरंज का अंतराष्ट्रीय खिलाड़ी बना, अंग्रेजी का प्राध्यापक बना, यूपीएससी की परीक्षा निकाल अधिकारी बना। जिसने वर्षों शोध कर दो दर्जन से ज्यादा ज्योतिषीय किताबें लिखने और मार्गदर्शन में लिखवाने का साक्षी बना। 


वर्ष 2004 में सुप्रीम कोर्ट में ज्योतिष विद्या को प्रतिबंधित करने के लिए दायर याचिका की सुनवाई चल रही थी। इसके खिलाफ में कई ज्योतिषियों ने हस्ताक्षरयुक्त हल्फ़नामा दिया। लेकिन न्यायालय में कोई ज्योतिषी नहीं आए। लेकिन इस आदमी ने अपने दम पर यानी साक्ष्य के साथ अकेले ही ठोस दलील देकर शांति भूषण जैसे वकील को परास्त कर याचिका खारिज कराई। देश से लेकर विदेशों तक हिन्दू ज्योतिष का डंका बजवाया। 


जिस महात्मा के नाम पर नई दिल्ली के नामी भारतीय विद्या भवन शैक्षणिक संस्थान में ज्योतिष संकाय संचालित है। वैसे महिषी, विद्वान केएन राव को पढ़ना, उनका अनुसरण करना अलहदा सुकून से भर देता है। एक अलग तरह के सुख की अनुभूति भी होती है। वे लिखते हैं,


*छाया ग्रह राहु केतु की दृष्टि नहीं होती।


*राहु व केतु गुरु की राशि धनु एवं मीन में अच्छे माने जाते हैं। यदि वे गुरु से दृष्ट हों तो शुभता प्राप्त करते हैं।


*राहु गंगास्नान, तीर्थ यात्राएं कराता है। यह जातक को बहिर्मुखी बनाता है, रुधिमुक्त साधना व स्वछंद धार्मिक अभिगम के लिए प्रेरित करता है।


*ठीक इसके विपरीत केतु जातक को अंतर्मुखी बनाकर एकांत और मौन में ले जाकर अंतर्ज्ञान, गुढ़ ज्ञान देता है। यह गुरु की तरह उत्तम मुक्तिदाता है।


*कुंडली में मंगल, शुक्र की युति वाला जातक कामदेव के अग्निबाणों को झेलते हुए, जीवन में कठिन संघर्ष करते हुए एक दिन 'ऊर्ध्वरेता (कुंडलिनी का जागृत होना)' होता है। हालांकि इसके लिए लग्नेश व अन्य कारक ग्रह भी अनुकूल होने चाहिए।


*सूर्य से तीन अंश के अंतर्गत ग्रह अस्त होता है। इसके अशुभ फल होते हैं। हालांकि हमेशा यह सच नहीं होता। अनुभव में पाया गया ये ग्रह लंबे समय तक पीड़ा दे सकते हैं।


*यदि अमावस्या की रात का जन्म हो, और चन्द्रमा मेष, सिंह, धनु (तीनों अग्नि राशि) राशि में प्रारंभिक अंश या मीन, कर्क, वृश्चिक (तीनों जलीय राशि) राशि में अंतिम अंश में हो, यह खतरनाक स्थिति है।


*शनि और मंगल से पीड़ित चंद्र वैराग्य की तीव्र भावना उत्पन्न करता है। हालांकि यह शोध व चिकित्सा क्षेत्र के लिए भी उत्तम है।


*सूर्य नैसर्गिक आत्मकारक ग्रह है (जैमिनी ज्योतिष में जिस ग्रह का अंश बल सबसे ज्यादा हो वो आत्मकारक कहलाता है।)


*दिन का जन्म हो तो शुक्र चन्द्रमा का स्थान ले लेता है। माता की भूमिका में रहता है। रात का जन्म हो तो शनि सूर्य स्थान लेता है, पिता का प्रतिनिधित्व करता है।


*काल सर्प नाम का कोई दोष नहीं होता। यह डराकर उगाही का माध्यम भर है। गुरु चंडाल दोष नहीं, एक प्रकार का योग है जो आध्यात्मिक उन्नति देता है।


*नीच क्षेत्री मंगल व शनि मानहानि देते हैं। कमजोर, पीड़ित शनि वाला वैराग्य की उच्च अवस्था में नहीं पहुंच सकता।


*पुरुष की कुंडली में विवाह से पहले शुक्र और बाद में मंगल भी पत्नी का प्रतिनिधि बन जाता है।


*महिला की कुंडली में यदि बुध शनि से पीड़ित हो तो वह अल्प पौरुष शक्ति या नपुंसक पति का द्योतक है।


*छठे भाव में पाप ग्रह अच्छे स्वास्थ्य में सहायक होते हैं। बाधाओं पर विजय पाने की प्रवृति देते हैं। आध्यात्मिक जीवन में यह भाव एक बिंदु में ध्यान केंद्रित करने में सहायक होते हैं।


*नीच के वर्गोत्तम ग्रह चाहे अष्टम में ही क्यों न बैठे हों, जीवन में संघर्ष तो खूब कराते हैं। लेकिन अंत में उस भाव का अच्छा ही फल देते हैं।


शेष फिर कभी...


Sanchit Kukshrestha

Author & Editor

I’m a Basset Hound aficionado with a mouth like a Syphilitic sailor.

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