आओ जातिगत बात करें

Tuesday, 7 July 2020

हम सब उस पीढ़ी के रूप में जाने जाएँगे जिन्होंने अपने इतिहास को मिट्टी में मिलते और महानायकों को झूठी वाहवाही के लिए फ़र्ज़ी जातियों का घोषित होते हुए देखा।

हमने देखा है ब्राह्मण अग्नि शर्मा जो ऋषि प्रचेता यानी सुमाली के पुत्र थे, उन महर्षि वाल्मीकि को एक राजनीति के रूप में दलित घोषित होते हुए।

हमने देखा है सम्राट अशोक मौर्य को कुशवाहा कोइरी कुर्मी या OBC घोषित होते हुए।

हमारे सामने गुर्जर प्रतिहार राजवंश के राजा मिहिरभोज को गुज्जर बना देने वाले लोग हैं। राजा सुहलदेव को पासी जाति का बोलकर एक फ़र्ज़ी राजनैतिक शब्द "दलित" को सार्थकता देने का भद्दा मजाक भी हमने देखा है।

और तो और सबसे भयंकर विडम्बना तब आई है जब एक ही पक्ष एक ही समय पर रावण को यूरेशियन ब्राह्मण भी बोलता है और मूलनिवासी राजा भी।

मैं पूछता हूँ, इसकी आवश्यकता क्या है ?
वर्ण व्यवस्था और जाति व्यवस्था एक नहीं हैं।

आज की जातियाँ एक लिस्ट हैं जो कुछ राजनेताओं और अंग्रेज़ी शासन द्वारा तैयार की गई थीं। 1990 से पहले कई जातियाँ ऐसी थीं कि उनका कोई शोषण नहीं हुआ था , मण्डल कमीशन के लागू होते ही वो सदियों तक शोषित वंचित पीड़ित जातियों में बदल गई।

संविधान द्वारा प्रदत्त भारतीय जातिगत भेदभाव प्रोत्साहन के लिए सबसे बड़ा औजार भारतीय शासन द्वारा दिया जाने वाला जाति प्रमाण पत्र है। सरकार खुद ही प्रमाणित करती है कि फ़लां व्यक्ति पिछड़ा है।

लोग उसे पाकर खुश होते हैं और अपने गले में टाँगकर हर जगह दिखाते हैं क्योंकि सरकार उन्हें अलग अलग फायदे भी देती है ऐसा करने के लिए।

है न एकदम सुंदर !
#OkDontMindHaan कोई भी इसपर बात नहीं करेगा क्योंकि जब मुफ्त में रबड़ी मलाई मिल रही है तो क्यों नहाना।
हिन्दू एकता के लिए सबसे पहला कदम ऐसे प्रमाणपत्र जारी करने वाली व्यवस्था को हटाना है, न कि झूठे लोगों को भगवान बनाकर पूजना।

आचरण से सनातनी बनिए , सबल बनिए। दुर्बलता के प्रमाणपत्र पाने को मत दौड़िये। 
वो बैसाखी है, और बैसाखी मोटरगाड़ी नहीं होती।

जय श्री राम

Sanchit Kukshrestha

Author & Editor

I’m a Basset Hound aficionado with a mouth like a Syphilitic sailor.

1 comments:

  1. बहुत अच्छा लेख लिखा बंधु👍🏼👍🏼

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